बुधवार, 13 जनवरी 2016

हिन्दुस्तान के गौरव हिंदुत्व के रक्षक वीर योद्धा मेवाड़ के महाराणा सांगा

   हिन्दूपति महाराणा संग्राम सिंह जो लोगों में "सांगा"के नाम से अधिक प्रसिद्ध है भारतीय इतिहास के एक ऐसे आदर्श महापुरुष हो चुके है जिनका जीवन -चरित्र शौर्यपूर्ण गाथाओं तथा त्याग और बलिदान की अमर उपलब्धियों से अभिमण्डित है।उन्होंने मध्यकालीन राजनीति में सक्रिय भाग लेकर हिंदुत्व की मानमर्यादा का संरक्षण तथा भारतीय संस्कृति के उच्चादर्शों का प्रतिष्ठान किया था जिसके कारण मेवाड़ का गौरव विश्बभर में समुन्नत हुआ।राणा सांगा अपनेसमय के श्रेष्ठ व् शिरमौर हिन्दू राजा थे।हिंदुस्तान के सभी राजा उनको सम्मान देते थे।मेवाड़ ने उनके ही शासनकाल में शक्ति और सम्रद्धि की चरमसीमा प्राप्त की। सांगा मेवाड़ की कीर्ति के कलश थे।वे पश्चिमी भारत हिन्दू राजा और सरदारों के।सर्वमान्य नेता थे।उन्हें हिंदुपति अर्थात हिंदुओं का स्वांमी कहते है।महाराणा सांगा वीर ,उदार 'कर्तज्ञ ,बुद्धिमान और न्याय परायण शासक थे।अपने शत्रु को कैद करके छोड़ देना और उसे पीछा राज्य दे देना सांगा जैसे ही उदार और वीर पुरुष का कार्य था।वह एक सच्चे क्षत्रिय थे,।उन्होंने अपनी वीरता निडरता और साहसी युद्ध -कौशल से मेवाड़ को एक सामाराज्य बना दिया था।राजपूताने के बहुधा सभी तथा कई बाहरी राजा आदि भी मेवाड़ के गौरव के कारण मित्रभाव से उनके झंडे तले लड़ने में अपना गौरव समझते थे।इस प्रकार राजपूत जाति का संगठन होने के कारण वे बाबर से लड़ने को एकत्र हुए।सांगा अंतिम हिन्दू राजा थे ,जिनके सेनापतित्व में सब राजपूत जातियां विदेशियों "तुर्कों "को भारत से निकालने के लिए सम्मलित हुई।यद्धपि इसके बाद और भी वीर राजा उत्पन्न हुए ,तथापि ऐसा कोई न हुआ ,जो सारे राजपूताने की सेना का
सेनापति बना हो।राणा सांगा ने देश के सम्मान और आदर्शों की स्थापना हेतु जीवन भर प्रयास किया ।दिल्ली और मालवा के मुगल बादशाहों से 18 बार युद्ध कर विजय प्राप्त की थी। दिल्ली के इब्राहिम लोधी ने 2 बार महाराणा से युद्ध किया ,दोनों ही बार उसकी पराजय हुई।मांडू मालवा के बादशाह महमूद दुतीय को कैद करना महाराणा सांगा के अदभुत पराक्रम का ही परिणाम था।इनके शरीर में युद्ध के 80 घाव थेऔर शायद ही शरीर में कोई अंश ऐसा हो जिस पर युद्धों में लगे हुए घावों के चिन्ह न हों।उसी समय समय बाबर ने दिल्ली के इब्राहिम लोधी को मार कर दिल्ली विजय करली।कुछ समय बाद बाबर ने आगरा भी जीत लिया।बाबर यह अच्छी तरह से जानता था की हिन्दुस्तान में उसका।सबसे भयंकर शत्रु महाराणा सांग था।उनके बढ़ती हुई शक्ति व् प्रतिष्ठा को बाबर जानता था।वह यह भी जनता था की महाराणा से युद्ध करने के दो ही परिणाम हो सकते है --या तोवह भारत का सम्राट हो जाय या उसकी सब आशाओं पर पानी फिर जाय और उसे बापस काबुल जाना पड़े।बाबर और महाराणा सांगा में17 मार्च 1527 को खानवा के मैदान में भयंकर युद्ध हुआ।रणभूमि में तीर लगने से सांगा मूर्छित हो गए।उन्हें इस अवस्था में युद्धभूमि से वापिस ले जाया गया।इस युद्ध में चंदेरी के मेदिनीराय खंगार और चन्दवार (जो उस समय आगरा के क्षेत्र में चौहान राजपूतों की राजधानी थी )के चौहान राजा मानिक चंद और उनके बेटे दलपत ने राणा सांगा के साथ मिलकर बाबर से भयंकर युद्ध किया था ।राव मानिक चंद और उनका पुत्र युद्ध क्षेत्र में अपने प्राणों का बलिदान कर अपने कुल के इस अंतिम अध्याय को अधिक तेजस्वी बनागये ।
बाबर लिखता है क़ि राणा सांगा अपनी वीरता और तलबार के बल से बहुत बड़ा हो गया था।उसकी शक्ति इतनी बढ़ गई थी क़ि मालवे ,गुजरात और दिल्ली के सुलतान में से कोई भी अकेला उसे हरा नही सकता था।करीब 200 शहरों में उसने मस्जिदें गिरवादी और बहुत से मुगलों को कैद किया।उसका मुल्क 10 करोड़ की आमदनी का था।उसकी सेना में एक लाख सवार थे।उसके साथ 7 राजा ,9 राव और 104 छोटे सरदार रहा करते थे।उसके 3 उत्तराधिकारी भी यदि वैसे ही वीर और योग्य होते ,तो मुगलों का राज्य भारतवर्ष में जमने न पाता।एक विदेशी तुर्क भी हमारे पूर्वजों के साहस ,वीरता ,शौर्य और बलिदान की गाथा का गुणगान करके दुनियां से चला गया।ये हमारे लिए गौरव की बात है क़ि उसने भी राणा सांगा की वीरता का गुणगान किया जिनके आदर्शों से हमें और हमारे युवा -पीढ़ी को कुछ सीख लेनी चाहिए।मैं ऐसे महान वीर और सनातन धर्म के रक्षक महान पराक्रमी योद्धा को तहे दिल से सत् -सत् नमन करता हूँ
जय हिन्द।
जय राजपुताना ।

लेखक --डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन ,गांव --लरहोता ,सासनी ,जिला --हाथरस ,उत्तरप्रदेश ।

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