मंगलवार, 9 जून 2015

अकबर भी नही टिक सका था इस वीर योद्धा के सामने......

एक वीर राजपूत योद्धा जिन्होंने अकबर को हरा कर भागने पर मजबूर किया,और कब्जे में लिए 52 हाथी 3530 घोड़े पालकिया आदि

वीर योद्धा भानजीदाल जाडेजा

राजपूत एक वीर स्वाभिमानी और बलिदानी कौम जिनकी वीरता के दुश्मन भी कायल थे जिनके जीते जी दुश्मन राजपूत राज्यो की प्रजा को छु तक नही पाये अपने रक्त से मातृभूमि को लाल करने वाले जिनके सिर कटने पर भी धड़ लड़ लड़ कर झुंझार हो गए

वक़्त विक्रम सम्वंत 1633(1576 ईस्वी) मेवाड़,गोंड़वाना के साथ साथ गुजरात भी उस वक़्त मुगलो से लोहा ले रहा था गुजरात में स्वय बादशाह अकबर और उसके सेनापति कमान संभाले थे
अकबर ने जूनागढ़ रियासत पर 1576 ईस्वी में आक्रमण करना चाहा तब वहा के नवाब ने पडोसी राज्य नवानगर (जामनगर) के राजपूत राजा जाम सताजी जडेजा से सहायता मांगी क्षत्रिय धर्म के अनुरूप महाराजा ने पडोसी राज्य जूनागढ़ की सहायता के लिए अपने 30000 योद्धाओ को भेजा जिसका नेतत्व कर रहे थे नवानगर के सेनापति वीर योद्धा भानजी जाडेजा
सभी राजपूत योद्धा देवी दर्शन और तलवार शास्त्र पूजा कर जूनागढ़ की और सहायता के निकले पर माँ भवानी को कुछ और ही मजूर था उस दिन
जूनागढ़ के नवाब अकबर की स्वजातीय विशाल सेना के सामने लड़ने से इंकार कर दिया व आत्मसमर्पण के लिए तैयार हुआ और नवानगर के सेनापति वीर भांनजी दाल जडेजा को वापस अपने राज्य लौट जाने को कहा इस पर भान जी और उनके वीर राजपूत योद्धा अत्यंत क्रोधित हुए इस पर भान जी जडेजा ने सीधे सीधे जूनागढ़ नवाब को रजपूती तेवर में कहा "क्षत्रिय युद्ध के लिए निकलता है या तो वो जीतकर लौटेगा या फिर रण भूमि में वीर गति को प्राप्त होकर"
वहा सभी वीर जानते थे की जूनागढ़ के बाद नवानगर पर आक्रमण होगा आखिर सभी वीरो ने फैसला किया की वे बिना युद्ध किये नही लौटेंगे
अकबर की सेना लाखो में थी उन्होंने मजेवाड़ी गाव के मैदान में अपना डेरा जमा रखा था
अन्तः भान जी जडेजा ने मुगलो के तरीके से ही कुटनीति का उपयोग करते हुए आधी रात को युद्ध लड़ने का फैसला किया सभी योद्धा आपस में गले मिले फिर अपने इष्ट स्मरण कर युद्ध स्थल की और निकल पड़े
आधी रात और युद्ध हुआ मुगलो का नेतृत्व मिर्ज़ा खान कर रहा था उस रात हजारो मुगलो को काटा गया मिर्जा खांन भाग खड़ा हुआ सुबह तक युद्ध चला मुग़ल सेना अपना सामान छोड़ भाग खड़ी हुयी

बादशाह अकबर जो की सेना से कुछ किमी की दुरी पर था वो भी उसी सुबह अपने विश्वसनीय लोगो के साथ काठियावाड़ छोड़ भाग खड़ा हुए युद्ध में मुग़ल सेनापति मिर्जा खान भाग खड़ा हुआ भान जी ने बहुत से मुग़ल मनसबदारो को काट डाला हजारो मुग़ल मारे गए
नवानगर की सेना ने मुगलो को 20 कोस तक पीछा किये जो हाथ आये जो काटे गए अंत भान जी दाल जडेजा में मजेवाड़ी में अकबर के शिविर से 52 हाथी 3530 घोड़े और पालकियों को अपने कब्जे में ले लिया
उस के बाद राजपूती फ़ौज सीधी जूनागढ़ गयी वहा नवाब को कायरकता का जवाब देने के लिए जूनागढ़ के किल्ले के दरवाजे भी उखाड दिए ये दरवाजे आज जामनगर में खम्बालिया दरवाजे के नाम से जाने जाते है जो आज भी वहा लगे हुए है
बाद में जूनागढ़ के नवाब को शर्मिन्दिगी और पछतावा हुआ उसने नवानगर महाराजा साताजी से क्षमा मांगी और दंड स्वरूप् जूनागढ़ रियासत के चुरू ,भार सहित 24 गांव और जोधपुर परगना (काठियावाड़ वाला)नवानगर रियासत को दिए

कुछ समय बाद बदला लेने की मंशा से अकबर फिर आया और इस बार उसे "तामाचान की लड़ाई" में फिर हार का मुह देखना पड़ा

इस युद्ध वर्णन सौराष्ट्र नु इतिहास में भी है जिसे लिखा है शम्भूप्रसाद देसाई ने साथ ही Bombay Gezzetarium published by Govt of Bombay साथ ही विभा विलास में,यदु वन्स प्रकाश जो की मवदान जी रतनु ने लिखी है आधी में शौर्य गाथा का वर्णन है

rajputana soch राजपुताना सोच और क्षत्रिय इतिहास

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