रविवार, 21 जून 2015

कीर्ति-पुरुष राव केल्हण

राव केल्हण रावल घडसी के उत्तराधिकारी रावल केहर के बड़े राजकुमार थे | उनकी जागीर आसणीकोट (वर्तमान देवीकोट ) थी | उन्होने अपने पिता से पूछे बिना महेवचों में शादी कर ली थी, इसलिए नाराज होकर रावल केहर ने उन्हें उत्तराधिकार से वंचित कर दिया था | वे अपनी सारी बस्ती के साथ बीकमपुर आ बसे |
लोक में एक भ्रान्ति चली आई है | नाम साम्य होने के कारण लोग केल्हण और काल्हण को एक मान लेते हैं | वस्तुतः राव केल्हण रावल काल्हण से कई पीढ़ियों बाद हुए हैं| रावल काल्हण तो रावल जैसल के बड़े पुत्र हैं, जैसलमेर के तीसरे रावल | जबकि राव केल्हण उत्तराधिकार से वंचित कर दिए जाने के बाद पूगल के शासक बने | जैसलमेर रियासत से उनका नाता ही टूट गया था |
केल्हण को बीकमपुर आने की सलाह उनके साथी सातल सिंघराव महीपालोत ने दी थी | तब बीकमपुर सूना पड़ा था | यह पहले जयतुंग भाटियों के पास था | उनके पास कई दिनों तक रहा | फिर पूगल पर मुलतान की फ़ौज आई और उस फ़ौज ने पूगल जीतकर बीकमपुर का घेरा डाला | जयतुंग राव कोल्हा के मरने के बाद में ही मुलतान के कब्जे में बीकमपुर आया | राव कोल्हा जयतुंग और उनके वंशजों के बसाए गाँव कोल्हासर, गिरिराजसर, नगराजसर आज भी बीकानेर जिले में स्थित हैं |
बीकमपुर का गढ़ स्तम्भ की तरह ऊँचा उठा हुआ था | मुलतान के शाह वीदा का निर्माण करवाया एक जैनमंदिर भी गढ़ में था | गढ़ में जबरदस्त झाड़-झंखाड़ थे | केल्हण ने उन सबको जलाकर गढ़ रहने लायक बनाया |
पूगल की गद्दी राव राणकदेव के देहावसान के बाद खाली थी | राणकदेव का बेटा तणु मुलतान के शासक के पास राव चूंडा के विरुद्ध सहायतार्थ गया था | उसके साथ उसका प्रधान मेहराव हमीरोत भाटी था | सुलतान ने इस प्रपंच में पड़ने से इनकार कर दिया | जब काम बनता हुआ नहीं दिखा तो वे मुसलमान बन गए, ताकि मुलतान का शासक खुश होकर उनकी सहायता करदे | मुलतान दिल्ली के ही आधीन था | दिल्ली पर उस समय सुलतान खिजरखां सैयद था | उसकी नीति धार्मिक सहिष्णुता की थी | धर्म गंवाने के बाद भी उन दोनों का काम नहीं बनातब वे दोनों पूगल लौट आए | सोढ़ी रानी नाराज हुई पर क्या कर सकती थी ? लोक वार्ताओं में ऐसा भी आता है कि सहायता न मिलने के पीछे राव केल्हण की कूटनीति थी | उनकी पहुँच दिल्ली के सुलतान तक थी |
अब सोढ़ी रानी के सामने कोई विकल्प नहीं था | उन्होंने पूगल से सन्देशवाहक ‘पेखणा’ (गायक) को बीकमपुर भेजा | केल्हण के पूगल पहुँचने पर सोढ़ीजी ने उनका स्वागत किया तथा राजगद्दी देने के बदले अपने पति व पुत्र की मौत का राठौड़ों से बदला लेने की शर्त रखी, किसे केल्हण ने सहर्ष स्वीकार कर लिया | साथ ही सोढ़ीजी ने अपने मुसलमान बने पुत्र कुमार तणु और प्रधान मेहराव हमीरोत भाटी के भरण पोषण की उचित व्यवस्था का आश्वासन भी चाहा, जिसे भी केल्हण ने स्वीकार कर लिया | राव बनते ही केल्हण ने कमाल पीर पेखणा जो रानी का सन्देश लेकर बीकमपुर गया था, उसे मुंहमांगा पुरस्कार देना चाहा | किंवदंती है कि स्वामिभक्त पेखणा ने तब राव केल्हण से कहा था –
‘आधी पूगळ पेखणै, आधी राणकदेव |
आधो गढ़ रौ काँगरौ, आधी मोय जकात |
धणी केल्हण, राणौ पेखणौ,कारी पूछे तात ||’
पूगल-राव बनते ही केल्हण ने पूगल के पड़ौस में स्थित भाटियों के पुराने ठिकानों पर नजर दौड़ाई | मारौठ, खारबारा, मुमणवाहण, गढ़नानणा, केहरोड़, माथेलाव, भटनेर और देरावर तक पूगल राज्य का विस्तार किया | लोकाख्यानों में केल्हण की कीर्ति का विस्तार दिल्ली तक बताया गया है | तत्कालीन दिल्ली के सुल्तान खिजरखां तक उनकी पहुँच बताई गई है| सुल्तान खिजरखां ने अपने एक फरमान में उन्हें ‘राव किलजी’ नाम से संबोधित किया है |
इतिहासकार केल्हण और तैमूरलंग के बीच हुई भिडंत का भी जिक्र करते हैं | सन 1398 ई. में इस भिड़ंत का उल्लेख भटनेर के आक्रमण से है | भटनेर का उल्लेख तुर्कों के दस्तावेजों में ‘तबरहिन्द’ के नाम से किया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है – ‘हिन्द का प्रवेशद्वार’| वस्तुतः भाटियों के गढ़-किले ही उस काल में पश्चिमोत्तर भारत में थे, जो बाहरी आक्रमणों से टकराते थे | इन किलों में सतलज नदी के पूर्वी तट के किले – सरहिंद, अबोहर, भटिंडा, फूलडा, मारोठ, देरावर, मूमणवाहण, ऊँच्छ, केहरोर और तन्नौट आदि सुप्रसिद्ध थे| इसीलिए भाटियों को ‘भारत के उत्तरी दरवाजे के रक्षक’ कहा है| राव केल्हण इसी दरवाजे पर खड़े थे| जो भी साक्ष्य हों, इतना सच्च अवश्य है कि राव केल्हण एक अद्भुत योद्धा, दूरदर्शी राजनीतिज्ञ और महत्वाकांक्षी व्यक्ति थे | जैसलमेर की राजगद्दी से हटाए और निष्कासित व्यक्ति ने जैसलमेर के समानांतर पूगल जैसे राज्य को हस्तगत किया जो उनके विक्रमी व्यक्तित्व का परिचायक है | उन्होंने तत्कालीन उभरती हुई शक्ति राठौड़ों के नायक राव चूंडा को उनके घर में घुस कर नागौर के पास जाकर मारा और पूगल की सोढ़ी रानी को दिए वचन को निभाया | ख्यातों में उनकी कीर्ति का विस्तार इस तरह बखाना गया है –
पूगळ, बीकूँपुर, पुणवि, मूमणवाह मरोट |
देरावर नै केहरोर, केल्हण इतरा कोट ||
राव केल्हण की पूगल की पीढ़ी- राव -1. चाचकदेव, 2.बैरसल 3. शेखा 4. हरा 5. वरसिंघ | राव बरसिंघ पूगल और बीकमपुर दोनों जगह शासक हुए |
राव केल्हण के बेटों का विवरण –
1. चाचकदेव – पूगल के अधिपति
2. रिणमल – बीकमपुर , इसके वंशज खरड़वाले भाटी | यह खरड़ बीकमपुर से अलग थी | रिणमल बीकमपुर छोड़कर यहाँ आकर बसा था | यह पडिहारों का भांजा था | यह खरड़ पहले बुध-खरेड़ो कहलाती थी | बुध भाटी राणा राजपाल के वंशज हैं | बाद में पड़िहार राणा रूपसी (राणा रूपड़ा) के पास आई | बारू इनका बड़ा गाँव | हेमराज पडिहार का खुदवाया कुआ हेमराजसर |
3. विक्रमादित्य –खीरवां |
4. अको –शेखासर | इसके बेटे शेखा के नाम से तालाब व गाँव |
5. कलिकरण –ताड़ाणै |
6. हरभम- नाचणौ और सरउपर |
राव केल्हण की एक रानी पठान भी थी, जिसके बेटे खुमाण और थिरा नाम से थे | खुमाण को चाचकदेव पूगलपति ने भटनेर दिया था, जहां आज भी उनके वंशज भट्टी-मुसलमान के नाम से जाने जाते हैं | इस तरह राव केल्हण ने अपना जैसलमेर रियासत से स्वतंत्र आधिपत्य स्थापित किया | यहाँ स्मरणीय है कि बीकानेर की स्थापना करने वाले राव बीका का ससुर राव शेखा पूगल अधिपति इन्हीं राव केल्हण का प्रपोता था | भगवती करनीजी ने यह शादी राव शेखा की मर्जी के बिना करवाई थी, क्योंकि तब भाटी राठौड़ों की विस्तारवादी नीति का विरोध कर रहे थे | इतिहास गवाह है कि बाद में बीकानेर भाटियों के इस राज्य का अधिकाँश हिस्सा हड़प गया था और पूगल पर अपना अधिकार कर लिया था | कालांतर में अंगरेजों से जब संधियाँ हुई तब पूगल के ठिकाने, (जिनका स्वाधीन अस्तित्व था) बरसलपुर और बीकमपुर अपने गांवों के साथ जैसलमेर रियासत में मिल गए | इस तरह एक स्वतंत्रत पूगल रियासत का अवसान हुआ |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें