मंगलवार, 16 जून 2015

सम्मान, स्वाभिमान और केसरिया ध्वज

दिल्ली की सल्तनत मुगल बादशाह जहाँगीर के हाथ में थी और दूसरे मुगल शासको की नीति पर ही चलते हुए हिंदुओ को भयंकर जानमाल की क्षति पहुँचाने में आनंद की प्राप्ति मुगलो को हो रही थी ।
दक्षिणी राजस्थान और मध्यप्रदेश "दरिया खान" नामक एक महा भयंकर मुगल अमीर के अत्याचार से त्रस्त थे और रोज सेंकडो हिन्दुओ का कत्ल और हिन्दू महिलाओ की इज्जत लूटी जा रही थी । उसका इतना अधिक आतंक था की कोई भी राजा उसका विरोध करने का साहस नही कर पाया ।
अंत में एक दिन कोटा बून्दी के "राजा राव रतन सिंह जी "ने उस दुष्ट को सबक सिखाने की सोच ही ली, पर समस्या ये थी की कोटा बूंदी की रियासत मुगलो के साथ सन्धि में बंधा था और जहाँगीर राव रतन सिंह जी को पूरा सम्मान भी देता था ।। रतन सिंह जी गहरी सोच में डूबे बेठे थे, कुछ समझ में नही आ रहा था क्या करे ? एक तरफ तो वो दुष्ट हिन्दू हन्ता राक्षस लगातार हिन्दुओ पर अत्याचार कर रहा था तो दूसरी तरफ सन्धि के वचनो की लाज ।।
अंत में उन्होंने तय कर ही लिया की चाहे मुझे सन्धि के वचन तोड़ने पड़े और पूरी मुगल सल्तनत से टक्कर लेनी पड़े में चौहान वंशी हाडा वीर हिन्दू धर्म का इस तरह नुकसान होते नही देख सकता । एक राजपूत क्षत्रिय का धर्म है की वो हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए प्राण भी दे और में इस राज्य के लालच में , नही नही ये नही हो सकता ।
दरिया खान मुगल सल्तनत में बहुत बड़ा कद रखता था और जब भी कोई युद्ध होता था तो सभी राजाओ को उसके आदेश की पालना करनी पड़ती थी , उसके ध्वज के नीचे उसके निर्देश को मानना बाध्यता थी और उस ज़माने का सबसे कुशल रणनीतिकार था और बहादुरी की मिसाल दी जाती थी । उससे लड़ना कोई आसान काम नही है महाराज, कुछ दरबारी बोले ।
पर रतन सिंह जी का निर्णय अडिग था और वो दिन आ ही गया ,, घमासान युद्ध हुआ और हिन्दू वीरो ने केसरिया बाना पहन कर जो युद्ध के जलवे दिखाये मुगलो की विशाल सेना कई किलोमीटर भागती गयी ।
मुगल अमीर दरिया खान को राव रतन सिंह जी ने बन्दी बना लिया , ये खबर जब जहाँगीर तक पहुंची तो सहसा उसको विस्वास नही हुआ ,
अरे , क्या ये सच है ? ऐसा कैसे मुमकिन हुआ ? कई शब्द बोलता हुआ वो सिंहासन से खड़ा हो गया ।।
फिर राव रतन सिंह जी को दरबार में बुलाने के लिए सन्देश भेज कर वो गहरे सोच में डूब गया की ये हिन्दू राजपूत कितने वीर बहादुर होते है ?
कोटा बूंदी रियासत में खबर आई तो सबने कहा वहां जाना खतरे से ख़ाली नही होगा महाराज । पर वीर बहादुर कहाँ खतरे से डरे है ।
दिल्ली के आलीसान दरबार में बेडियो में जकडे मुगल अमीर को खड़ा देख जहाँगीर और उसके मुगल दरबारियों को लगा की ये दरिया खान नही मुगल सल्तनत खड़ी है । पर छल और धूर्तता में मुगलो की कोई सानी नही ये तो मानना होगा ।।
जहाँगीर बड़ा खुश हुआ और राव रतन सिंह जी को गले लगा लिया । जहांगीर के इस अप्रत्यासित कार्य से सब भोचन्के थे । में आपकी वीरता और बहादुरी से बहुत खुश हूँ , आप आज जो भी मांगिये हम सब देंगे , दरबार में सन्नाटा सा छा गया और सब मुग़ल दरबारी एक दूसरे का मुंह देख रहे ।।
राव रतन सिंह जी ने कुछ सोचा और बोले " में जब भी किसी युद्ध में जाऊ तो में किसी मुगल के अधीन नही हूँ और मेरा ध्वज "केसरिया" ही हो । में मुगल सल्तनत के ध्वज के नीचे नही लड़ू ।
राव रतन सिंह जी ने एक ही वाक्य में केसरिया ध्वज ,अपने सम्मान स्वाभिमान सबकी रक्षा कर ली ।
एक राजपूत के लिए सम्मान स्वाभिमान और हिन्दुवा प्रतीक केसरिया अपने प्राणों से भी प्यारा होता है।
जहाँगीर ने इस बात को तुरंत मान ली और वो राजपूत वीर योद्धा उस दुष्ट पापी दरिया खान को जहांगीर के पांवो में पटक कर चला गये । मुगल दरबारी बोले " जहापनाह ये क्या किया ?" जहांगीर बोला अरे मूर्खो जरा सोचो , जब ये वीर इस दरिया खान को बन्दी बना सकता है तो इसकी क्षमता क्या होगी ? जब ये मुगलो के लिए लड़ेगा तो ऐसा कौन होगा जो इसके सामने टिक पायेगा ।।
दोनों अपने अपने फैसलो से खुश थे ।
राव रतन सिंह जी दक्षिणी राजस्थान और मध्यप्रदेश के हिन्दुओ को बड़ी राहत भी पहुंचा दी और अपने केसरिया ध्वज और सम्मान की रक्षा भी कर ली थी ।
सम्मान, स्वाभिमान ,पराक्रम और त्याग के प्रतीक रघुकुल पूजित केसरिया ध्वज छोड़कर एक क्षत्रिय के लिए प्राण से भी प्यारा संसार में और है ही क्या "

साभार:- कुँवर वीरेन्द्र सिंह शेखावत

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