सोमवार, 15 जून 2015

कर्तव्य की वेदी पर

क्रूर मुगल बादशाह ओरेंगजेब ने अपने सभी भाइयो का कत्ल करवाया और खुद के पिता को जेल में डालकर दिल्ली  का बादशाह बन बेठा और ये मुगलो के लिए कोई नई बात नही थी उनके तो खून में ही छल कपट और गदारी भरी  थी , पर ये बात उस समय के राजपूतो को हजम नही हो रही थी । उनके लिए तो ये अधर्म और अन्याय था ।
ऐसे ही एक राजपूत राजा थे जोधपुर के "जसवंत सिंह राठोड़" ,  ओरेंगजेब का भाई दारा शिकोह इनका मित्र था और जब ओरेंगजेब ने दारा का कत्ल करवाया तो जसवंत सिंह राठौड़ से रहा नही गया और कुछ राजपूत वीरो के साथ ओरेंगजेब की विशाल सेना पर टूट पड़े , मुगलो का जमीनी युद्ध में बहुत कम संख्या वाले राजपूत वीरो ने हाल खराब कर दिया, घबरा कर मुगलो ने तोप खाने का सहारा लिया और गोलों की बरसात सी कर दी ,, यघपि राजपूत वीरता से लड़े पर मुगलो की विशाल सेना और तोप के गोलों की वजह से यसवंत सिंह जी की हार हो गयी और वो अपने 500 सैनिको के साथ युद्ध स्थल से पलायन कर गए ।
"महारानी माया देवी " जो की चितोड़ के राणा की बेटी थी , को जब ये खबर लगी की उनके पति युद्ध स्थल से पीठ दिखा कर भाग आये तो बड़ी दुःखी हुई और दवारपाल को दुर्ग के दवार बन्द करने के आद्देश दे दिया । उनके इस विचित्र आदेश को सुन दरबारियों और जनता को बड़ा आस्चर्य हुआ । आखिर एक दरबारी ने पूछ ही लिया , "महारानी जी, आप ये क्या कर रही है ? द्वार बन्द कर देने से महाराज कहाँ जायेंगे ? क्या एक स्त्री का यही कर्तव्य है की विपदा में पड़े स्वामी का ऐसा स्वागत करे ?"
महारानी ने उत्तर दिया , "में एक रजपुतनी हूँ और राजपूत स्त्री पति की कायरता को पसन्द नही करती , में ये कैसे सहन करू की मेरे पति युद्ध से पीठ दिखा कर भाग आये , राठौड़ कुल पर ये कलंक कैसे धूल पायेगा ? में अपनी जान दे सकती हूँ पर कुल को कलंकित नही होने दूंगी |
महाराज यसवंत सिंह जी के पास ये संदेश पहुँचाया गया और द्वार नही खोलने का महारानी का आदेश भी  ।
महाराज को बात समझते देर नही लगी । वे तुरंत और अधिक सेनिक लेकर युद्ध स्थल की और लोट पड़े और वीरता से लड़ते हुये वीरगति को प्राप्त हुए ।
ऐसी थी हमारी मातृ शक्ति ,इसलिए वो सिंहनी, सिंह शावक पैदा करती थी जो अकेला पूरी सेना से लड़ लेता था और हँसते हंसते वीरगति को प्राप्त हो जाता पर माँ और पत्नी की आँख में आंसू नही आते बल्कि गर्व से मस्तक ऊँचा हो जाता ।
कहाँ है आज वो मातृ शक्ति और वो वीरता ?
जब तक हम देश और धर्म के लिए प्राण त्यागना नही सीखेंगे पुनः वो सम्मान नही पा सकेंगे ।।

साभार कुँवर वीरेन्द्र सिंह शेखावत

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